भारत-चीन संबंधों में नए दौर की शुरुआत: औद्योगिक निवेश और रणनीतिक साझेदारी का बढ़ता प्रभाव

हाल ही में भारत सरकार की विदेश नीति में स्पष्ट रूप से बदलाव देखने को मिला है, जो लंबे समय से चले आ रहे तनावों को पीछे छोड़, नए सहयोग और स्थिरता की ओर बढ़ने को दर्शाता है।



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1. भारत-चीन संबंधों में नरमी और रणनीतिक पुनर्संतुलन


प्रधानमंत्री मोदी ने चीन के साथ रिश्तों को "मल्टीपोलर दुनिया के लिए महत्वपूर्ण" बताते हुए नई शुरुआत की घोषणा की है, जिसमें परस्पर सम्मान और संवेदनशीलता को आधार बनाया गया है।

इसके साथ ही दोनों देशों के बीच सीमा वार्ता, यातायात संबंधों की बहाली, और कूटनीतिक वार्ताओं में तेजी आई है – जो SCO शिखर सम्मेलन से पहले की गई साझा पहल है।



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2. जापान के साथ व्यापार और रक्षा सहयोग में धन की बारिश


प्रधानमंत्री मोदी जापान की यात्रा पर हैं, जहां उन्होंने १५वें भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया। जापान ने सेमीकंडक्टर, एआई, तकनीकी और रक्षा क्षेत्रों में भारत में १० ट्रिलियन येन (करीब $६८ अरब) से भी अधिक निवेश की घोषणा की है।

यह समझौता "मेक इन इंडिया, मेक फॉर वर्ल्ड" पहल को एक नई ऊँचाई पर ले जाएगा।



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3. अमेरिकी टैरिफ का असर: निर्यात विविधीकरण की दिशा में कदम


उच्च अमेरिकी टैरिफ (लगभग ५०%) की वजह से व्यापार बाधाओं का सामना कर रहे भारत ने अपनी निर्यात नीति में बदलाव की शुरुआत कर दी है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने नए बाजारों में विस्तार और घरेलू मांग बढ़ाने की रणनीति अपनाने का संकेत दिया है।



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निष्कर्ष


इन सभी घटनाओं से स्पष्ट होता है कि भारत अपनी विदेश नीति को अब सिर्फ विरोध या तनाव आधारित नहीं रख पा रहा, बल्कि यह एक रणनीतिक, सहयोगात्मक और स्थायित्व पर आधारित मार्ग की ओर अग्रसर है।


चीन के साथ कूटनीतिक पुनर्संतुलन


जापान से बड़े निवेश और तकनीकी साझेदारी


अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव से निपटने के लिए रणनीतिक निर्यात नीति



लगातार बदलते वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की यह बहुपक्षीय और संतुलित नीति आने वाले समय में देश को अधिक सशक्त और वैश्विक मंच पर निर्णायक बनाएगी।


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